क्या रावण का कोई बड़ा भाई भी था ? उसका वध माता सीता ने क्यों किया ?
Was there any elder brother of Ravan? If Yes, Why Sitaji had to kill him? क्या रावण का कोई बड़ा भाई भी था ? उसका वध माता सीता ने क्यों किया ?
अद्भुत रामायण में वाल्मीकि रामायण से भिन्न कुछ कथाएं है। उन्हीं में से एक है सहस्त्र रावण की कथा। लंका विज़य के बाद श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया था । इस अवसर पर इनके अभिनन्दन के लिये सभी ऋषि मुनि राजदरबार में उपस्थित हए । उन्होंने एक स्वर से कहा – राबण के मारे जाने से अब विश्व मे शान्ति स्थापित हो गयी है । सब लोग सुख और शान्ति की श्वास ले रहे है । उस समय सभी ऋषि मुनि श्रीराम के पराक्रम और रावण के विनाश की बात kar rhe the jise सुनकर देवी सीता को हँसी आ गयी । इस समय मे उनकी हंसी देखकर सबका ध्यान उनकी तरफ गया और मुनियों ने देवी सीता से हंसी का कारण पूछा । इस पर सीता ने रामजी तथा मुनियों की आज्ञा लेकर एक अद्भुत वृत्तान्त बतलाते हुए कहा :
जब मैं छोटी थी, तब मेरे पिता महाराज जनक ने अपने घर मे एक ब्राह्मण क्रो आदरपूर्वक चातुर्मास्य व्रत करवाया। मैं भलीभांति ब्राह्मण देवता की सेवा करती थी । अवकाश के समय ब्राह्मण देवता तरह तरह की कथा मुझे सुनाया करते थे । एक दिन उन्होंने सहस्त्रमुख रावण का वृत्तान्त सुनाया, विश्रवा मुनि की पत्नी कैकसी ने दो पुत्रों को जन्म दिया । बड़े का नाम सहस्रानन और छोटे का नाम Dashanan । दशमुख रावण ब्रह्मा के वरदान से तीनों लोको को जीतकर लंका मे निवास करता है और बड़ा पुत्र सहस्त्रमुख रावण पुष्करद्विप में अपने नाना सुमालि के पास रहता है ।
वह बडा बलवान है। मेरु को सरसों के समान, समुद्र को गायके खुर और तीनों लोकों को तृणके समान समझता है । सबको सताना उसका काम है । जब सारा संसार उससे त्रस्त हो गया, तब ब्रह्माने उसे “वत्स ! पुत्र ! आदि प्यारभरे सम्बोधनों से प्रसन्न किया और किसी तरह इस कुकृत्य से रोका । उसका उत्पात तो कम हो गया, परंतु समूल गया नहीं । उस सहस्त्र मुख रावण की कथा सुनाकर वे ब्राह्मण यथासमय वापस लौट गये किंतु आज भी वह घटना वैसी ही याद है । आज आप लोग दशमुरव रावण के मारे जाने से ही सर्वत्र सुख शांति की बात कैसे कर रहे हैं जबकि पुष्करद्विप में सहस्त्रमुख रावण का अत्याचार अभी भी कम नहीं हुआ है, यही सुनकर मुझे हंसी आ गयी, इसके लिये आप सभी मुझे क्षमा करे ।
मेरे स्वामी ने दशमुख रावण का विनाशकर महान् पराक्रम का परिचय अवश्य दिया है; किंतु जबतक वह सहस्त्रमुख रावण नहीं मारा जाता, जगत में पूर्ण आनन्द कैसे हो सकता है?
इस हितकारिणी और प्रेरणादायक वाणी को सुनकर श्रीराम ने उसी क्षण पुष्पक विमान का स्मरण किया और इस शुभकार्य को शीघ्र सम्पन्न करना चाहा । वानरराज़ सुग्रीव और राक्षस राज विभीषण को दलबल के साथ बुला लिया गया । इसके बाद बडी सेना के साथ श्रीरामने पुष्पक विमान से पुष्कर क्षेत्र के लिये प्रस्थान किया । पुष्पक की तो अबाध गति थी, वह शीघ्र पुष्कर पहुंच गया । जब सहस्त्रमुख रावण ने सुना कि उससे युद्ध करने के लिये कोई आया है तो उसके गर्व को बहुत ठेस पहुंची । वह तुरत संग्राम में आ पहुचा । वहाँ मनुष्यों, वानरों और भालुओं की लंबी कतार देखकर वह हँस पड़।
उसने सोचा, इन क्षुद्र ज़न्तुओ से क्या लड़ना है । क्यों न इनको इनके देश भेज दिया जाय ऐसा सोचकर उसने वायव्यास्त्रका प्रयोग किया । जैसे koi बलवान् व्यक्ति बच्चों को गलबहियाँ देकर बाहर निकाल देता है, वैसे वायव्यास्त्रने सभी प्राणियों को बाहर निकाल दिया । केवल चारों भाई, सीताजी, हनुमान, नल, नील, विभीषण पर इसका प्रभाव नहीं पङा। अपनी सेना की यह स्थिति देखकर श्रीराम सहस्त्रमुख पर टूट पड़े ।
श्री राम के अमोघ बाणों से राक्षस तिल-तिल कटने लगे । यह देख सहस्त्रमुख रावण क्षुब्ध हो गया । वह गरजकर बोला – आज मैं अकेले ही सारे संसार को मनुष्यों और देवताओं से रहित कर दूँगा । यह कहकर वह जोर शोर से रामपर बाण चलने लगा । श्रीरामने भी इसका जबरदस्त जवाब दिया है धीरे धीरे युद्धने लोमहर्षक रूप धारण कर लिया। सहस्त्रमुख ने पन्नगास्त्र का प्रयोग किया । फलत: विषधर सर्पो से समस्त दिशाएँ एवं विदिशा व्याप्त हो गयी । राम ने सौपर्णेयास्त्र से उसे काट दिया । इसके बाद श्रीरामने उस बाण का संधान किया जिससे इन्होंने रावण को मारा था, किंतु सहस्त्रमुख रावण ने इसे हाथसे पकड़कर तोड़ दिया और एक बाण मारकर श्रीराम को मूर्छित कर दिया ।
श्री राम को मूर्छित देखकर सहस्त्रमुख अतीव प्रसन्न हुआ, दो हजार हाथो को उठाकर नाचने लगा । सती स्वरूपिणी सीता यह सह न सकीं । उन्होंने महाकाली का विकराल रूप धारण का लिया और एक ही निमेष मे सहस्त्रमुख रावण का सिर काट लिया सेना को तहस नहस कर दिया । यह सब क्षण भर मे हो गया । सहस्त्रमुख रावण ससैन्य मारा गया, किंतु महाकाली का क्रोध शान्त नहीं हुआ । उनके रोम-रोम से सहस्त्रों मातृका: उत्पन्न हो गयी, जो घोर रूप धारण किये हुए थीं । महाकाली के रोष से सारा ब्रह्माण्ड भयभीत हो गया । पृथ्वी काँपने लगी । देवता भयभीत हो गये । तब ब्रह्मादि देवगण उनके क्रोध क्रो शान्त करने के लिये उनकी स्तुति करने लगे । उनकी स्तुतियों से किसी तरह देवी का क्रोध शान्त हुआ । श्रीराम भी चैतन्यता को प्राप्त हो गये । सभी ने मिलकर उस आदिशक्ति की आराधना की ।
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