ॐ हनुमते दुख भंजन,
अंजनी सुत केसरी नंदन
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों .
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो .
रावण त्रास दई सिय को सब ,
राक्षसी सों कही सोक निवारो .
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मरो .
आनि सजीवन हाथ दिए तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो .
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो .
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो